इस प्रकार सृष्टि संवत :-
6 मनवन्तर 1,84,03,20,000
27 चतुर्युग 11,66,40,000
सतयुग+त्रेतायुग+द्वापरयुग+कलियुग के बीता समय 38,93,118
वर्तमान सृष्टि संवत् 1,96,08,53,118
प्रलय। चौदह मन्वन्तरों की एक मानव सृष्टि होती है, इसके पश्चात प्रलय होता है। उपरोक्त गणना के अनुसार वर्तमान सृष्टि संवत् तक मनुष्य एवं वेदों की उत्पत्ति हुए 1,96,08,53,118 वर्ष बीत चुके है । अभी मानव सृष्टि 2,33,32,26,882 वर्ष और रहेगी, इसके पश्चात प्रलय होगा। गणना निम्न प्रकार है-
एक मन्वन्तर = 30,67,20,000 वर्ष
चौदह मन्वन्तर = 4,29,40,80,000 वर्ष
मानव सृष्टि का बिता समय = 1,96,08,53,118 वर्ष
अभी मानव सृष्टि रहेगी = 4,29,40,80,000 वर्ष – 1,96,08,53,118 वर्ष
अभी मानव सृष्टि का शेष समय = 2,33,32,26,882 वर्ष
सृष्टि रचना-
सभी मत-पंथ सम्प्रदायों की अपनी अपनी मान्यता है जिसे लेकर आगे बढ़ रहे है । क़ुरान का अपना मत है, बाइबिल का अपना मत, और भी बहुत मत-मतान्तर के लोग अपने अपने मत को अहमियत देते है ।
जब की संसार की सबसे पुरानी पुस्तक ऋग्वेद है । जो वेदों का ही एक भाग है । साधारणतया इस संसार में मुख्यतः चार वेद है जो ईश्वर कृत है :- ऋग्वेद, अर्थववेद, यजुर्वेद और सामवेद । संसार उत्पत्ति के विषय में नासा (National Aeronautics and Space Administration) जो सयुंक्त राज्य अमेरिका की शाखा है जो देश के सार्वजनिक अन्तरिक्ष कार्यकर्मो व एरोनॉटिक्स व एरोस्पेस संशोधन के लिए भी जिम्मेदार है लेकिन मूर्ख लोग नासा (National Aeronautics and Space Administration) के कहने पर बाकि सभी बातों को पूर्णत: सत्यापित मान लेते है। इस सृष्टि उत्पत्ति के विषय में अपने ही मत को मान्यता देते फिरते है। जबकि सत्यार्थ प्रकाश में महर्षि दयानन्द जो एक महान ऋषि हुए है न की भगवान, उन्होंने इस पुस्तक में संसार उत्पति से तक एक-एक दिन की गणना की है। और ये सिद्ध भी किया है की इस सृष्टि को 1,96,08,53,118 वर्ष बीत चुकें है ।
इन अलग-अलग सम्प्रदायों के भगवानों ने तो बता दिया की अल्लाह ने 14,00 वर्ष पहले संसार की रचना की, ईशा मसीह ने 2,000 साल पहले की लेकिन कोई भी न तो तथ्य देकर सिद्ध करना चाहता है और इनमे से न कोई नासा (National Aeronautics and Space Administration) की बात मानना चाहता है।
जब यह कार्य सृष्टि उत्पन्न नहीं हुई थी , तब एक सर्वशक्तिमान परमेश्वर और दूसरा जगत का कारण अर्थात जगत बनाने की सामग्री विराजमान थी | उस समय असत शून्य नाम आकाश अर्थात जो नेत्र से नहीं देखा जा सकता है वो भी नहीं था क्योंकि उस समय उसका व्यवहार नहीं था | उस काल में सतोगुण तमोगुण और रजो गुण मिला के जो प्रधान कहाता है वो भी नहीं था | उस समय परमाणु भी नहीं थे तथा जो सब स्थूल जगत के निवास का स्थान है सो भी नहीं था | उस समय क्या पदार्थ चारो ओर से घेर सकता था ? कुछ नहीं , यह सब फिर कहाँ था किसके आश्रय में था | तो फिर क्या गहन अर्थात जिसमे किसी का प्रवेश न हो सके कोई व्यापक भाषमान तत्व विद्यमान था।
( ऋग्वेद १०/१२९/१ )