राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे, सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥
सभी हिंदू घरों में गोस्वामी तुलसीदासजी कृत श्रीरामचरित मानस का सस्वर पाठ किया जाता है। विशेष अवसरों पर अखंड पाठ का भी आयोजन किया जाता है। ऐसा करने से घर के सभी समस्त क्लेश नाश होकर सुख-शांति प्राप्त होती है। इसका कारण यही है कि स्वयं भगवान महादेव ने रामचरित मानस की चौपाईयों को मंत्रस्वरुप होने का आशीर्वाद दिया है। भगवान शिव के इस वरदान स्वरूप ही मानस की हर चौपाई अपने आप में एक सिद्ध मंत्र बन गई है। इन चौपाईयों के प्रयोग से आप भी अपनी समस्त समस्याओं को सहज ही दूर कर सकते हैं।
श्रीरामचरित मानस की चौपाईयों को प्रयोग करने का विधान यही है कि किसी भी शुभ मुहूर्त में मंगलवार या शनिवार के दिन रात दस बजे बाद अष्टांग हवन द्वारा सिद्ध कर लेना चाहिए। जिस भी कार्य को पूरा करने की इच्छा हो, उसी से जुड़ी चौपाई को हवन द्वारा सिद्ध करना चाहिए। इसके बाद उसका रोजाना 108 बार जप करना चाहिए। अष्टांग हवन के लिए सामग्री निम्न प्रकार हैं-
(1) चन्दन का बुरादा, (2) तिल, (3) शुद्ध घी, (4) चीनी, (5) अगर, (6) तगर, (7) कपूर, (8) शुद्ध केसर, (9) नागरमोथा, (10) पञ्चमेवा, (11) जौ और (12) चावल।
सभी सामग्रियां मिलाकर कुल सवा सेर के लगभग हो जाना चाहिए। सभी चीजें बराबर मात्रा में लें। पञ्चमेवा में पिश्ता, बादाम, किशमिश (द्राक्षा), अखरोट और काजू ले सकते हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले नौजा या मिश्री मिला सकते हैं। शुद्ध केसर 4 दाने भी ले सकते हैं।
चौपाई सिद्ध करने के पहले इन बातों का ध्यान रखें-
जिस भी उद्देश्य अथवा कार्यपूर्ति के लिये चौपाई या दोहा का प्रयोग बताया गया है। उसे मंगलवार अथवा शनिवार की रात हवन द्वारा सिद्ध कर लेना चाहिए। मिट्टी की सुंदर सी वेदी बनाकर उस पर अग्नि प्रज्जवलित कर उसमें उक्त चौपाई की आहुति देनी चाहिए। प्रत्येक आहुति में चौपाई के अन्त में ‘स्वाहा’ शब्द अवश्य जोड़े। इस प्रकार उक्त चौपाई की 108 आहुति दें। यह केवल एक ही बार करना है। यदि चौपाई लंकाकाण्ड अथवा सुंदरकांड की है तो हवन केवल शनिवार को ही करना चाहिए। अन्य चौपाईयों के लिए मंगलवार या शनिवार में से कोई भी दिन अपनी सुविधानुसार चुन सकते हैं।
हवन आरंभ करने के पूर्व अपने आसन के चारों ओर रामरक्षास्रोत बोलते हुए एक रेखा खींच लेनी चाहिए। इससे किसी भी प्रकार की नकारात्मक शक्तियां आपकी पूजा तथा संकल्प को खंडित नहीं कर पाएंगी। हवन आरंभ करने के पूर्व अपने इष्टदेव, गुरुदेव तथा घर के पितृगणों तथा बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें। यदि संभव हो तो हवन किसी शिवमंदिर अथवा हनुमानजी के मंदिर में करें, इससे आपको तुरंत लाभ होगा।
हवन करने के बाद आपको वह चौपाई सिद्ध हो जाएगी। इसके बाद जब तक आपका कार्य पूर्ण न हो जाए, तब तक उस चौपाई का प्रतिदिन कम से कम 108 बार जप करें। आप चाहे तो जप सुबह या रात्रि के समय कर सकते हैं।
यदि एक साथ दो-तीन कार्यों के लिए अलग-अलग चौपाईयों का अनुष्ठान करना हो तो एक साथ प्रयोग किया जा सकता है। परन्तु इन सभी चौपाईयों को अलग-अलग दिन हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिए।
चौपाई निम्न प्रकार हैं-
श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।
श्री सीताराम के दर्शन के लिये
नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम। लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥
श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।
श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।
सहज स्वरुप दर्शन के लिये
भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।
भक्ति की प्राप्ति के लिये
भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम। सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।
मोक्ष–प्राप्ति के लिये
सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।
ऋद्धि सिद्ध की प्राप्ति के लिए
साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहि सिद्धि अनिमादिक पाएं।।
धन सम्पत्ति की प्राप्ति हेतु
जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख सम्पत्ति नानाविधि पावहिं
लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए
जिमि सरिता सागर मंहु जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपत्ति बिनहि बोलाएं। धर्मशील पहिं जहि सुभाएं।।
वर्षा की कामना की पूर्ति हेतु
सोइ जल अनल अनिल संघाता। होइ जलद जग जीवनदाता।।
सुख प्राप्ति के लिए
सुनहि विमुक्त बिरत अरू विबई। लहहि भगति गति संपति नई।।
शास्त्रार्थ में विजय पाने के लिए
तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।।
विद्या प्राप्ति के लिए
गुरु ग्रह गए पढ़न रघुराई। अलपकाल विद्या सब आई।।
ज्ञान प्राप्ति के लिए
छिति जल पावक गगन समीरा। पंचरचित अति अधम शरीरा।।
प्रेम वृद्धि के लिए
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीती।।
परीक्षा में सफलता के लिए
जेहि पर कृपा करहिं जनुजानी। कवि उर अजिर नचावहिं बानी।।
मोरि सुधारहिं सो सब भांती। जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।।
विपत्ति में सफलता के लिए
राजिव नयन धरैधनु सायक। भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।।
संकट से रक्षा के लिए
जौं प्रभु दीन दयाल कहावा। आरतिहरन बेद जसु गावा।।
जपहि नामु जन आरत भारी। मिटहि कुसंकट होहि सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।
विघ्न विनाश के लिए
सकल विघ्न व्यापहि नहिं तेही। राम सुकृपा बिलोकहिं जेही।।
दरिद्रता दूर करने हेतु
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद्र दवारिके।।
अकाल मृत्यु से रक्षा हेतु
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित प्रान केहि बात।।
विविध रोगों, उपद्रवों आदि से रक्षा हेतु
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम काज नहिं काहुहिं व्यापा।।
विष नाश के लिए
नाम प्रभाऊ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।
खोई हुई वस्तु की पुनः प्राप्ति हेतु
गई बहारे गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।
महामारी, हैजा आदि से रक्षा हेतु
जय रघुवंश वन भानू। गहन दनुज कुल दहन कूसानू।।
मस्तिष्क पीड़ा से रक्षा हेतु
हनुमान अंगद रन गाजे। होक सुनत रजनीचर भाजे।।
शत्रु को मित्र बनाने के लिए
गरल सुधा रिपु करहि मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
शत्रुता दूर करने के लिए
वयरू न कर काहू सन कोई। रामप्रताप विषमता खोई।।
भूत प्रेत के भय से मुक्ति के लिए
प्रनवउ पवन कुमार खल बन पावक ग्यान धुन।
जासु हृदय आगार बसहि राम सर चाप घर।।
सफल यात्रा के लिए
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। हृदय राखि कौशलपुर राजा।।
पुत्र प्राप्ति हेतु
प्रेम मगन कौशल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बाल चरित कर गान।।
मनोरथ की सिद्धि हेतु
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरू नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहि त्रिसरारी।।
हनुमान भक्ति हेतु
सुमिरि पवन सुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।।
विचार की शुद्धि हेतु
ताके जुग पद कमल मनावऊं। जासु कृपा निरमल मति पावऊं।।
ईश्वर से क्षमा हेतु
अनुचित बहुत कहेउं अग्याता। छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।।
विपत्ति–नाश के लिए
राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।
संकट–नाश के लिए
जौ प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।
कठिन क्लेश नाश के लिए
हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥
विघ्न शांति के लिए
सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥
खेद नाश के लिए
जब ते राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥
चिन्ता की समाप्ति के लिए
जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥
विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिए
दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि व्यापा॥
मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिए
हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।
विष नाश के लिए
नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।
अकाल मृत्यु निवारण के लिए
नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट। लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।
सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिए / भूत भगाने के लिए
प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन। जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥
नजर झाड़ने के लिए
स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननी तृन तोरी।।
खोई हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए
गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।
जीविका प्राप्ति के लिए
बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।
दरिद्रता मिटाने के लिए
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।
पुत्र प्राप्ति के लिये
प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान। सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।
सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
जे सकाम नर सुनहि जे गावहि। सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।
ऋद्धि–सिद्धि प्राप्त करने के लिये
साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।
सर्व–सुख–प्राप्ति के लिये
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
मनोरथ–सिद्धि के लिये
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि। तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।
कुशल–क्षेम के लिये
भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।
मुकदमा जीतने के लिये
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।
शत्रु के सामने जाने के लिये
कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥
शत्रु को मित्र बनाने के लिये
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
शत्रुता नाश के लिये
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥
वार्तालाप में सफ़लता के लिये
तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥
विवाह के लिये
तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥
यात्रा सफ़ल होने के लिये
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥
आकर्षण के लिये
जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥
स्नान से पुण्य–लाभ के लिये
सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग। लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।
निन्दा की निवृत्ति के लिये
राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अल्प काल विद्या सब आई॥
उत्सव होने के लिये
सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं। तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।
यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।
प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
कातर की रक्षा के लिये
मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।
भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग। सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग॥
विचार शुद्ध करने के लिये
ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।
संशय–निवृत्ति के लिये
राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।
ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।
विरक्ति के लिये
भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं। सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।
ज्ञान–प्राप्ति के लिये
छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।