दानेन प्राप्यते स्वर्गः श्रीर्दानेनैव लभ्यते।
दानेन शत्रून् जयति व्याधिर्दानेन नश्यति।।
अर्थात् दान के द्वारा मनुष्य इस लोक में समस्त प्रकार के सुख भोगकर मृत्यु पश्चात् परलोक में भी शांति तथा सुख की प्राप्ति करता है। दान द्वारा ही शत्रुओं को नाश होता है और दान द्वारा ही समस्त व्याधि-बीमारियां समाप्त होती हैं, दान से ही मनुष्य के समस्त कष्ट दूर होते हैं।
सनातन धर्म में दान की विशेष महिमा बताई गई है। जो लोग किसी भी प्रकार का धर्म-कर्म नहीं कर सकते, मंत्र जाप नहीं कर सकते, योग आदि में अक्षम है तथा जिनका मन धर्म में नहीं लगता, उन सभी के लिए दान करना अनिवार्य बताया गया है। दान करने मात्र से ही उनकी समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है।
दान में भी अन्नदान व जलदान को विशेष माना गया है। अन्न तथा जल का दान कोई भी कभी भी कर सकता है परन्तु अन्य किसी भी प्रकार का दान सोच-विचार कर ही देना चाहिए।
किस व्यक्ति को कब और क्या दान करना चाहिए, इसके लिए उसे किसी विद्वान ज्योतिषी से पूछ लेना चाहिए अन्यथा दान अहितकर भी हो सकता है। ज्योतिष में कुंडली में नवग्रहों की स्थिति के आधार पर उनकी शांति के निमित्त दान करने की परंपरा रही है। ग्रहों के भिन्न-भिन्न प्रकार के दान निम्न प्रकार हैं-
1. सूर्य
पद्मासनः पद्मकरो द्विबाहुः
पद्मद्युतिः सप्ततुरड्गवाहः।।
दिवाकरो लोकगुरुः किरीटी
मयि प्रसादं विदधातु देव।।
हे सूर्यदेव! आप रक्तकमल के आसन पर विराजमान रहते हैं, आपके दो हाथ हैं, तथा आपके दोनों ही हाथों में रक्तकमल विराजमान हैं। रक्तकमल के समान ही आपकी आभा है। आपके रथ में सात घोड़े जुते हुए हैं, आप दिन में प्रकाश फैलाने वाले हैं, लोकों के गुरु हैं तथा मुकुट धारण करने वाले हैं, आप प्रसन्न होकर मुझ पर अपनी कृपा कीजिए।
सूर्य को ग्रहराज माना गया है। सूर्य के निमित्त दान हेतु बतलाया गया है-
कौसुम्भवस्त्रं गुडहेमताम्रं माणिक्यगोधूमसुवर्णपद्मम्।
सवत्सगोदानमिति प्रणीतं दुष्टाय सूर्याय मसूरिकाश्च।।
सूर्य को ग्रहराज माना गया है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सर्य प्रतिकूल हो तो उसे धेनु अर्थात् गाय का दान देना चाहिए। दानचन्द्रिकाग्रन्थ व ज्योतिःसार ग्रंथ के अनुसार सूर्य के निमित्त लाल-पीले रंग से मिश्रित वर्ण का वस्त्र, गुड़, स्वर्ण, तांबा, माणिक्य, गेहूं, लाल कमल, सवत्सा गौ (बछड़े सहित गाय) तथा मसूर की दाल का दान देना चाहिए।
2. चन्द्रमा
श्वेताम्बरः श्वेतविभूषणश्च
श्वेतद्युतिर्दण्डधरो द्विबाहुः।
चन्द्रोऽमृतात्मा वरदः किरीटी
श्रेयांसि मह्यं विदधातु देव।।
हे चन्द्रदेव! आप श्वेत वस्त्र तथा श्वेत आभूषण धारण करने वाले हैं। आपके शरीर की कान्ति श्वेत है। आप दण्ड धारण करते हैं, आपके दो हाथ हैं, आप अमृतात्मा हैं, वरदान देने वाले हैं तथा मुकुट धारण करते हैं, आप मेरा कल्याण करें।
ज्योतिष में चन्द्रमा मन का प्रतिनिधित्व कारक हैं। चन्द्रमा की अनुकूलता से ही मन तथा मस्तिष्क की शांति प्राप्त होती हैं।
घृतकलशं सितवस्त्रं दधिशंड्ख मौक्तिकं सुवर्णं च।
रजतं च प्रदद्याच्चन्द्रारिष्टोपशान्तये त्वरितम्।।
चन्द्रमा की अनुकूलता के घृत कलश (घी से भरा कलश), श्वेत वस्त्र, दही, शंख, मोती, स्वर्ण तथा चांदी का दान करना चाहिए।
3. मंगल
रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटी
चतुर्भुजो मेषगमो गदाभृत्।
धरासुतः शक्तिधरश्च शूली
सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः।।
जो रक्त वस्त्र धारण करने वाले, रक्त विग्रहवाले मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, मेषवाहन, गदा धारण करने वाले, पृथ्वी पुत्र, शक्ति तथा शूल धारण करने वाले हैं, वे मंगल मेरे लिए सदा वरदयी तथा शांति प्रदान करने वाले हों।
ज्योतिष में मंगल को भूमिपुत्र माना गया है। मंगल ग्रह की शांति हेतु लाल पुष्प तथा ब्राह्मण को भोजन दान देना चाहिए।
प्रवालगोधूममसूरिकाश्च वृषं सताम्रं करवीरपुष्पम्।
आरक्तवस्त्रं गुडहेमताम्रं दुष्टाय भौमाय च रक्तचन्दनम्।।
गेहूं, मूंगा, मसूर की दाल, लाल वर्ण वाला बैल, कनेर पुष्प, लाल पुष्प, लाल वस्त्र, गुड़, स्वर्ण, तांबा तथा लाल चंदन का दान करने के मंगल की अनुकूलता प्राप्त होती है।
4. बुध
पीताम्बरः पीतवपुः किरीटी
चतुर्भुजो दण्डधरश्च हारी।
चर्मासिधृक् सोमसुतः सदा मे
सिंहाधिरूढो वरदो बुधश्च।।
जो पीत वस्त्र धारण करने वाले, पीत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, दण्ड, माला, ढाल तथा तलवार धारण करने वाले तथा सिंहासन पर विराजमान रहने वाले हैं, वे चन्द्रमा के पुत्र बुध सदैव मेरे लिए वरदायी हो।
चन्द्रमा पुत्र बुध शिक्षा, व्यापार, व्यवसाय, बुद्धि आदि का कारक हैं। बुध की अनुकूलता हेतु कहा गया है-
नीलं वस्त्रं मुद्गहैमं बुधाय रत्नं पाचिं दासिकां हेमसर्पिः।
कांस्यं दन्तं कुञ्जरस्याथ मेषो रौप्यं सस्यं पुष्पजात्यादिकं च।।
अर्थात् बुध की शांति हेतु नीले वस्त्र, मूंग, स्वर्ण, पन्ना, दासी, स्वर्णयुक्त घी, कांसा, हाथी दांत, भेड़, धन, धान्य, पुष्प, फल आदि का दान करना चाहिए।
5. गुरु
पीताम्बरः पीतवपुः किरीटी
चतुर्भुजो देवगुरुः प्रशान्तः।
दधाति दण्डञ्च कमण्डलुञ्च
तथाक्षसूत्रं वरदोऽस्तु मह्यम्।।
जो पीला वस्त्र धारण करने वाले, पीत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चतुर्भुज रूप धारी, अत्यन्त शांत स्वभाव वाले हैं तथा जो दण्ड, कमण्डलु एवं अक्षमाला धारण करते हैं, वे देवगुरु बृहस्पति सदैव मेरे लिए वरदायी तथा कल्याणकारी हों।
ज्योतिष में गुरु को पिता, गुरु तथा आत्मा का कारक बताया गया है। गुरु की अनुकूलता हेतु निम्न वस्तुओं का दान देना उत्तम रहता है-
अश्वः सुवर्णं मधुपीतवस्त्रं सपीतधान्यं लवणं सपुष्पम्।
सशर्करं तद्रजनीप्रयुक्तं दुष्टाय शान्त्यै गुरवे प्रणीतम्।।
अर्थात् गुरु के निमित्त अश्व, स्वर्ण, शहद, पीले वस्त्र, पीला धान्य (चने, मूंग की दाल), नमक, पीले पुष्प, शर्करा, पुखराज रत्न, भूमि, पुस्तक, हल्दी आदि का दान करना चाहिए।
6. शुक्र
श्वेताम्बरः श्वेतवपुः किरीटी
चतुर्भुजो दैत्यगुरुः प्रशान्तः।
तथाक्षसूत्रञ्च कमण्डलुञ्च
जयञ्च बिभ्रद्वरदोऽस्तु मह्यम्।।
जो श्वेत वस्त्र धारण करने वाले, श्वेत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चतुर्भुजा वाले, शांतस्वरूप, अक्षसूत्र, कमण्डलु तथा जयमुद्रा धारण करने वाले हैं, वे दैत्यगुरु शुक्राचार्य सदैव मेरे लिए वरदायी हों।
विद्वान ज्योतिषियों के अनुसार शुक्र जीवन में भोग-विलास व कलात्मक अभिरूचियों को प्रकट करता है। शुक्र ग्रह हेतु निम्न प्रकार के दान बतलाए गए हैं-
चित्रवस्त्रमपि दानवार्चिते दुष्टगे मुनिवरैः प्रणोदितम्।
तण्डुलं घृतसुवर्णरूप्यंक वज्रकं परिमलो धवला गौः।।
अर्थात् सुन्दर वस्त्र, चित्र, चावल, घी, स्वर्ण, धन, हीरा, सुगन्धित दिव्य पदार्थ, श्रृंगार सामग्री, सवत्सा श्वेत गौ (बछड़े सहित गाय), स्फटिक, कपूर, शर्करा, मिश्री, दही आदि का दान करने से शुक्र ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती है।
7. शनि
नीलद्युतिः शूलधरः किरीटी
गृध्रस्थितस्त्राणकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रशान्तो
वरप्रदो मेऽस्तु स मन्दगामी।।
जो नीली आभा वाले, शूल धारण करने वाले, मुकुट धारण करने वाले, गृध्र पर विराजमान, रक्षा करने वाले, धनुष को धारण करने वाले, चार भुजा वाले, शान्त स्वभाव एवं मंद गति वाले हैं, वे सूर्यपुत्र शनि मेरे लिए वरदायी एवं कल्याणकारी हों।
शनि की ख्याति न्यायाधीश के रूप में है। शनि ग्रह मनुष्य के कर्मों के आधार पर उसके भाग्य की रचना करता है। जन्मकुंडली में शनि के अशुभ या प्रतिकूल होने पर निम्न दान देना चाहिए।
नीलकं महिषं वस्त्रं कृष्णं लौहं सदक्षिणम्।
विश्वामित्रप्रियं दद्याच्छनिदुष्टप्रशान्तये।।
अर्थात् शनि ग्रह की शांति के निमित्त नीलम, भैंसा, काले वस्त्र, छाता, लोहा, जटा वाला नारियल, उड़द, तिल, जूते, कम्बल आदि का दान दक्षिणा सहित करना चाहिए।
8. राहु
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी
करालवक्त्रः करवालशूली।
चतुर्भुजश्चर्मधरश्च राहुः
सिंहासनस्थो वरदोऽस्तु मह्यम्।।
नीला वस्त्र धारण करने वाले, नीले विग्रह वाले, मुकुटधारी, विकराल मुख वाले, हाथ में ढाल-तलवार तथा शूल धारण करने वाले एवं सिंहासन पर विराजमान राहु मेरे लिए वरदायी हों।
ज्योतिष में राहु को छाया ग्रह माना गया है। राहु की अनुकूलता प्राप्त करने हेतु कहा गया है-
राहोर्दानं कृष्णमेषो गोमेदो लौहकम्बलौ।
सौवर्णं नागरूपं च सतिलं ताम्रभाजनम्।।
राहु ग्रह की शांति के निमित्त खड्ग काली भेड़, गोमेद, लोहा, कम्बल, सोने का सर्प, तिल से भरा ताम्रपात्र (तांबे का बर्तन) दान करना उत्तम है।
9. केतु
धूम्रो द्विबाहुर्वरदो गदाभृत्
गृध्रासनस्थो विकृताननश्च।
किरीटकेयूरविभूषिताड्गः
सदास्तु मे केतुगणः प्रशान्तः।।
धुएं के समान आभा वाले, दो हाथ वाले, गदा धारण करने वाले, गृध्र के आसन पर स्थित रहने वाले, भयंकर मुख वाले, मुकुट एवं बाजूबन्द से सुशोभित अंगों वाले तथा शान्त स्वभाव वाले केतुगण मेरे लिए सदा वर प्रदान करने वाले हों।
राहु की भांति केतु भी छाया ग्रह है। जन्मकुंडली में केतु के प्रतिकूल या अशुभ होने पर निम्न उपाय करने चाहिए।
केतोवैंदूर्यममलं तैलं मृगमदं तथा।
ऊर्णांस्तिलैस्तु संयुक्तां दद्यात्क्लेशानुपत्तये।।
स्वच्छ निर्दोष वैदूर्य मणि (लहसुनिया), तैल, कस्तूरी, तिलयुक्त ऊनी वस्त्र (कम्बल), लोहा, छाता, उड़द का दान करने से केतु ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती है।
दान संबंधी नियम
1.दान का कार्य किसी विद्वान पंडित की देखरेख में ही होना चाहिए। दान देते समय पंचांग तथा वार का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। सामान्यतया नवग्रहों के निमित्त दान उस ग्रह के वार को ही किया जाता है। उदाहरण के लिए सूर्य हेतु रविवार को, चन्द्रमा हेतु सोमवार को, मंगल ग्रह हेतु मंगलवार को, बुध हेतु बुधवार को, गुरु हेतु गुरुवार को, शुक्र हेतु शुक्रवार को, शनि हेतु शनिवार को दान किया जाता है।
2.दान करते समय उसके साथ दक्षिणा भी अवश्य होनी चाहिए। बिना दक्षिणा का दान फलहीन माना जाता है।
3.नवग्रह दान हेतु कहा गया है-
विषुवत्ययने राहुग्रहणे शशिसूर्ययोः। जन्मर्क्षे सोमवारे वा पञ्चदश्यां तथैव च।।
पुण्यकालेषु सर्वेषु पुण्यदेशे विशेषतः। ग्रहदानं तु कर्तव्यं नित्यं श्रेयोऽभिकाड्ंक्षिणा।।
अर्थात् यह दान विषुवत् संक्रान्ति, सूर्यचन्द्र-ग्रहण, जन्मनक्षत्र, सोमवार, पूर्णिमा एवं अमावस्या को करना अत्यन्त शुभ माना गया है। इसी प्रकार नवग्रह दान करने से मनुष्य के समस्त प्रकार के रोग, शोक, दुख आदि शांत होते हैं तथा उसके समस्त पापों का शमन होकर सुख, शांति व सब प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यह दान मनुष्य की सभी इच्छाओं को पूर्ण करता है।