(यह सम्प्रदाय भारत का प्राचीन, उदार, ऊँच-नीच की भावना से परे एवं अवधूत अथवा योगियों का सम्प्रदाय है।)
नाथ सम्प्रदाय का आरम्भ आदिनाथ शिव से हुआ है और इसका वर्तमान रुप देने वाले योगाचार्य श्री गोरखनाथ जी, भगवान शिव के अवतार हुए है। इनके प्रादुर्भाव और विलय का कोई लेख अब तक प्राप्त नही हुआ।
पद्म, स्कन्द शिव ब्रह्मण्ड आदि पुराण, तंत्र महापर्व आदि तांत्रिक ग्रंथ बृहदारण्याक आदि उपनिषदों में तथा और दूसरे प्राचीन ग्रंथ रत्नों में श्री गुरु गोरखनाथ की कथायें बडे सुचारु रुप से मिलती है।
श्री गोरख नाथजी ने चारो युगों में चार भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में प्रगट होकर योग मार्ग का प्रचार किया, और सामान्य मनुष्य, चक्रवर्ती सम्राटो और साथ ही अनेक दैवीय अवतारों को भी उपदेशित किया
सतयुग में पंजाब के पेशावर में, त्रेता युग में गोरखपुर में, द्वापर युग में द्वारिका के आगे हुरभुज में और कलिकाल में काठियावाड की गोरखमढ़ी में प्रादर्भूत हुये थे। कुछ लोगों की मान्यता है की महावातर बाबाजी जो कहीं भी और कभी भी प्रकट हो सकते तथा सदैव युवा अवस्था धारण किये रहते है वो और कोई नहीं स्वयं श्री गोरख नाथ जी है। परन्तु नाथ सम्प्रदाय में इसका कहीं भी उल्लेख नहीं है ।
श्री गोरखनाथ वर्णाश्रम धर्म से परे पंचमाश्रमी अवधूत हुए है जिन्होने योग क्रियाओं द्वारा मानव शरीरस्थ महाशक्तियों का विकास करने के अर्थ संसार को उपदेश दिया और हठ योग की प्रक्रियाओं का प्रचार करके भयानक रोगों से बचने के अर्थ जन समाज को एक बहुत बड़ा साधन प्रदान किया।
श्री गोरखनाथ जी ने योग सम्बन्धी अनेकों ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे जिनमे बहुत से प्रकाशित हो चुके है और कई अप्रकाशित रुप में योगियों के आश्रमों में सुरक्षित हैं।
श्री गोरखनाथ की शिक्षा एंव चमत्कारों से प्रभावित होकर अनेकों बड़े-बड़े राजा इनसे दीक्षित हुए। उन्होंने अपने अतुल वैभव को त्याग कर निजानन्द प्राप्त किया तथा जन-कल्याण में अग्रसर हुए। इन राजर्षियों द्वारा बड़े-बड़े कार्य हुए।
श्री गोरखनाथ जी की परम्परा में शाबर मन्त्रों का भी अविष्कार हुआ जो जनमानस की समस्याओं का निराकरण बहुत ही चमत्कारी विधि से करते है । कहते है की कलयुग में वैदिक मन्त्रों से सरल और प्रभावी शाबर मन्त्रों का चमत्कार दिखाई देगा ।
श्री गोरखनाथ ने संसारिक और गुरु शिष्य परंपरा मर्यादा की रक्षा के अर्थ श्री मत्स्येन्द्रनाथ को अपना गुरु माना और चिरकाल तक इन दोनों में शंका समाधान के रुप में संवाद चलता रहा। वो संवाद ही नाथ परम्परा में साधना हेतु दिशा निर्देश प्राप्ति के ग्रन्थ है ।
श्री मत्स्येन्द्र को भी पुराणों तथा उपनिषदों में नारायण अवतार माना गया है अनेक जगह इनकी कथायें लिखी हैं ।
बुद्ध काल में वाम मार्ग का प्रचार बहुत प्रबलता से हुआ, जिसके सिद्धान्त बहुत ऊँचे थे, किन्तु साधारण बुद्धि के लोग इन सिद्धान्तों की वास्तविकता न समझ कर भ्रष्टाचारी होने लगे थे।
इस काल में उदार चेता श्री गोरखनाथ ने वर्तमान नाथ सम्प्रदाय का निर्माण किया । जिसका उद्देश्य निश्चित ही हठ योग द्वारा ईश्वर प्राप्ति है परन्तु इसके साथ साथ लोगों की समस्याओं का हल, देश को संघटित कर आत्मनिर्भर बनाने का कार्य भी नाथ योगियों द्वारा समय समय पर किया गया ।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में श्री गोरखनाथ जी का भव्य मंदिर व धूना उपस्थित है । वर्तमान में इस पीठ पर आसन्न योगी आदित्यनाथ इसी परम्परा के योगी है जिन्होनें अपने गुरु के आदेश से अपना जीवन देश सेवा में भी लगाया हुआ है ।
नाथ सम्प्रदाय में प्रचलित नवनाथ ध्यान, वन्दना व स्तुति मंत्रों जिन नामों का प्रचलन है और सम्प्रदाय के संतो, साधुओ और योगीजनो द्वारा जिन नामों का अपने योग ग्रन्थों में वर्णन किया है वे नवनाथ क्रमशः –
१- आदिनाथ शिव
२- उदयनाथ पार्वती
३- सत्यनाथ ब्रह्मा
४- संतोषनाथ विष्णु
५- अचल अचम्भेनाथ शेषनाग
६- गजकंथडनाथ गणेश
७- चौरंगी नाथ चन्द्रमा
८- मत्स्येन्द्रनाथ माया स्वरूप
९- गुरु गोरखनाथ शिव बाल स्वरूप
भारत के प्रायः सभी प्रान्तों में योगी सम्प्रदाय के बड़े-बड़े वैभवशाली आश्रम है और उच्च कोटि के विद्वान इन आश्रमों के संचालक हैं।
श्री गोरखनाथ जी का नाम नेपाल प्रान्त में बहुत बड़ा था और अब तक भी नेपाल का राजा इनको प्रधान गुरु के रुप में मानते है और वहाँ पर इनके बड़े-बड़े प्रतिष्ठित आश्रम हैं। यहाँ तक कि नेपाल की राजकीय मुद्रा (सिक्के) पर श्री गोरख का नाम है और वहाँ के निवासी गोरख ही कहलाते हैं। काबुल- गान्धर सिन्ध, विलोचिस्तान, कच्छ और अन्य देशों तथा प्रान्तों में यहा तक कि मक्का मदीने तक श्री गोरखनाथ ने दीक्षा दी थी और ऊँचा मान पाया था।
इस सम्प्रदाय में कई भाँति के गुरु होते हैं यथाः- चोटी गुरु, चीरा गुरु, उपदेशी गुरु, भस्मी गुरु, लंगोट गुरु आदि।
श्री गोरखनाथ जी ने कर्ण छेदन- या चीरा चढ़ाने की प्रथा प्रचलित की थी, यह एक योगिक क्रिया के साथ दिव्य साधना रूप परीक्षा भी है,
कान चिराने को तत्पर होना कष्ट सहन की शक्ति, दृढ़ता और वैराग्य का बल प्रकट करता है।
श्री गुरु गोरखनाथ ने यह प्रथा प्रचलित करके अपने अनुयायियों शिष्यों के लिये एक कठोर परीक्षा नियत कर दी।
कान फडाने के पश्चात मनुष्य बहुत से सांसारिक झंझटों से स्वभावतः या लज्जा से बचता हैं।
चिरकाल तक परीक्षा करके ही कान फाड़े जाते थे और अब भी ऐसा ही होता है। बिना कान फटे साधु को ‘ओघड़’ कहते है और इसका आधा मान होता है।
भारत में श्री गोरखनाथ जी के नाम पर कई विख्यात स्थान हैं और इसी नाम पर कई महोत्सव मनाये जाते हैं। यह सम्प्रदाय अवधूत सम्प्रदाय है।
अवधूत शब्द का अर्थ होता है ” स्त्री रहित या माया प्रपंच से रहित”
जैसा कि ” सिद्ध सिद्धान्त पद्धति” में लिखा हैः-
“सर्वान् प्रकृति विकारन वधु नोतीत्यऽवधूतः।
“अर्थात् जो समस्त प्रकृति विकारों को त्याग देता या झाड़ देता है वह अवधूत है।
पुनश्चः-
” वचने वचने वेदास्तीर्थानि च पदे पदे।
इष्टे इष्टे च कैवल्यं सोऽवधूतः श्रिये स्तुनः।
एक हस्ते धृतस्त्यागो भोगश्चैक करे
स्वयम्अलिप्तस्त्याग भोगाभ्यां सोऽवधूतः श्रियस्तुनः॥
उपर्युक्त लेखानुसार इस सम्प्रदाय में नव नाथ पूर्ण अवधूत हुए थे और अब भी अनेक अवधूत विद्यमान है।
नाथ योगी अलख (अलक्ष) शब्द से अपने इष्ट देव का ध्यान करते है। परस्पर आदेश शब्द से अभिवादन करते हैं।
अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है जिसका वर्णन वेद और उपनिषद आदि में किया गया है।
आत्मेति परमात्मेति जीवात्मेति विचारणे।
त्रयाणामैकयसंभूतिरादेश इति किर्तितः।।
आदेश इति सद्वाणिं सर्वद्वंद्व्क्षयापहाम्।
यो योगिनं प्रतिवदेत् सयात्यात्मानमैश्वरम्।।
– सिद्ध सिद्धांतपद्धति
“आ” आत्मा
“दे” देवात्मा/परमात्मा
“श” शरीरात्मा/जीवात्मा
आत्मा, परमात्मा और जीवात्मा की अभेदता ही सत्य है, इस सत्य का अनुभव या दर्शन ही “आदेश कहलाता है. व्यावहारिक चेतना की आध्यात्मिकता प्रबुद्धता जीवात्मा और आत्मा तथा परमात्मा की अभिन्नता के साक्षात्कार मे निहितहै. इन तथ्यों का ध्यान रखते हुए जब योगी एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं अथवा गुरुपद मे प्रणत होते हैं तो “आदेश-आदेश” का उच्चारण का जीवात्मा, विश्वात्मा और परमात्मा के तादात्म्य का स्मरण करते हैं.
एक और रूप में “आदेश” का अर्थ = आदि+ ईश, आदि से आशय है महान या प्रथम, और ईश से आशय देवता से है,
अर्थात प्रथम देव या “महादेव”….और आदिनाथ भगवान शिव द्वारा प्रवर्तित होने के कारण “नाथ सम्प्रदाय” के योगियो तथा अनुयायिओ द्वारा “आदेश” का संबोधन किया जाता है।
नाथ योगी अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते है।
गले में एक लकड़ी अथवा धातु की नादी और पवित्री रखते है। इन दोनों को “नादी जनेऊ” भी कहते है,
नाथ योगी मूलतः शैव हैं अर्थात शिव की उपासना करते है।
षट् दर्शनों में योग का स्थान अत्युच्च है और नाथ योगी, योग मार्ग पर चलते हैं अर्थात योग क्रिया करते है जो कि आत्म दर्शन का प्रधान साधन है।
जीव ब्रह्म की एकता का नाम योग है।
चित्त वृत्ति के पूर्ण निरोध का योग कहते है।
नाथ संप्रदाय के योगी एवं अनुयायी मुख्यतः बारह शाखाओं में विभक्त हैं, जिसे बारह पंथ कहते हैं ।
इन बारह पंथों के कारण नाथ संप्रदाय को ‘बारह-पंथी’ योगी भी कहा जाता है । प्रत्येक पंथ का एक-एक विशेष स्थान है, जिसे नाथ लोग अपना पुण्य क्षेत्र मानते हैं । प्रत्येक पंथ एक पौराणिक देवता अथवा सिद्ध योगी को अपना आदि प्रवर्तक मानता है ।
नाथ संप्रदाय के बारह पंथों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
1.सत्यनाथी – सत्यनाथ ब्रह्मा – पाताल मुवनेश्वर – उडीसा
2. धर्मनाथी – धर्मनाथ युधिष्ठिर – दुल्लुदेलक – नेपाल
3. रामपंथ – भगवान रामचंद्र – पंचौरा
4. नटेश्वरी – लक्ष्मण – गोरख टीला – झेलम पंजाब
5.कन्थड नाथी – श्री गणेश – मनफरा – कच्छ
6. कपिलानी – कपिल मुनी – गंगासागर – बंगाल
7. वैराग-पंथ – भर्तृहरी – राताढूंढा – पुष्कर के पास अजमेर,
8. माननाथी – गोपीचंद – टांई – सीकर, राज.
9. आई पंथ – भगवती विमला – खोत – हरियाणा
10. पागलपंथ – चौरंगीनाथ – पंजाब
11. ध्वज पंथ – हनुमान – मगरा
12. गंगानाथी – भीष्म पितामह – जखबार – पंजाब
अलख आदेश
ॐ शिव गोरख
(उपरोक्त लेख में यदि अज्ञानतावश कोई त्रुटि रह गई हो तो उससे भी अवगत कराने का श्रम करें, धन्यवाद । )