पर्यावरण को ठीक रखने के लिए घर के आस-पास पेड़-पौधों का होना आवश्यक है। वृक्ष प्राणीमात्र का मित्र हैं। केवल बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने में नहीं, अपितु जलवायु एवं वातावरण के संतुलन में भी वृक्षों का योगदान सर्वोपरि है। वृक्षों की जड़, शाखा, पत्ता, छाल, फल-फूल आदि सभी चीजें मानव-जाति के लिए उपयोगी हैं। अत: घर और उसके आस-पास पौधे लगाना मनुष्य का धर्म हैं। जैसा कि आचार्य वराहमिहिर ने कहा है-
यह तो सभी जानते है कि पेड़-पौधे जीवधारियों की श्रेणियों में आते है और उनकी संरचना उन्ही पंचतत्वों से हुई है, जिससे समस्त प्रकृति एवं अन्य जीवों व पौधों का भी पोषण, जलवायु एवं पृथ्वी में निहित भोजन सामग्री ने मनुष्य की तरह होता है। मनुष्य को बना बनाया भोजन चाहिए जबकि पेड़-पौधे अपना भोजन स्वयं बनाते है और ग्रहण करते है, अत: संक्षेप में ईश्वर की इस व्यवस्था को भी जानने का प्रयास करें।
वास्तुशास्त्रीय ग्रन्थ वृहद्वास्तुमाला में कहा गया है कि जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, एक बरगद, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आँवला और पाँच आम के वृक्ष लगाता है वह नरक के दर्शन नहीं करता । कहा भी गया है-
जीव योनियों की भाँति वृक्षों एवं वनस्पतियों की भी अनेक प्रजातियाँ है, साथ ही उनके अलग-अलग स्वभाव, गुण और धर्म है। अत: जिस तरह अन्य जीव अपने गुण-धर्मो के माध्यम से अपना प्रभाव रखते है, उसी तरह के गुण-धर्म पेड़-पौधों में भी विद्यमान होते हैं। अत: जब हम अपने घरों में पेड़-पौधों को लगाते है तो वह अपने स्वभाव के अनुसार हमें अपना प्रभाव प्रदान करते हैं। अत: हमारे ऋषि-मुनियों ने अपने दीर्घकालीन अनुसंधान और अनुभव के द्वारा बताया है कि पेड़-पौधों का हमारे ऊपर, घर में लगने से या आसपास विभिन्न दिशाओं में लगाने से क्या प्रभाव होता है। अत: यह आवश्यक है कि पेड-पौधों को उनके गुण-धर्म एवं प्रभाव के अनुरूप घर में तथा घर के आस-पास विभिन्न दिशाओं में लगाकर उनका लाभ उठाएँ।
हे वृक्षराज। तुम्हें नमस्कार हैं। तुम्हारे मूल में ब्रह्रा, छाल में विष्णु, शाखाओं में महेश्वर तथा पत्ते-पत्ते में देवाताओं का वास है।
‘‘दस कूप समावापी, दस वापी समोहद:। दस हम सम: पुत्रों दस पुत्र समो हुय:।।’’
अर्थात् दस कुओं के बराबर एक बावड़ी, दस बावडिय़ों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता हैं।
अर्थात् समस्त प्राणियों को जीवन प्रदान करने वाले इन वृक्षों का जन्म कितना उत्तम हैं । कितने धन्य है वे जिनके पास से कोई याचक निराश नहीं लौटता।
जाने कौन सा वृक्ष आपका आराध्य देव है- क्या आपने कभी सोचा है कि जिस वृक्ष की आप निर्ममता पूर्वक कटाई कर रहे है कहीं वह आपका आराध्य वृक्ष तो नहीं हैं।
आपके जन्म नक्षत्र की तरह प्रत्येक वृक्ष का नक्षत्र होता है, जिनमें से कुछ विशेष वृक्षों के जन्म नक्षत्रों की जानकारी निम्रानुसार हैं। आपके जन्म नक्षत्र से जिस वृक्ष का जन्म नक्षत्र मिलता है वहीं आपका आराध्य वृक्ष होता है जिसके पूजन से आप लाभान्वित हो सकते है।
{1} अश्विनी : कुपिलु/कुचला-Strycnous nuxvomica
{2} भरणी : आमलकी/आंवला-phyllanthus embilica
{3} कृतिका : गूलर -Ficus glomerata
{4} रोहिणी : जामुन-Syzygium cumini
{5} मृगशिरा : खदिर/खैर-Acacia catechu
{6} आर्द्रा : शीशम-Dalbergia sisso
{7} पुनर्वसु : वंश/बांस-bamboo
{8} पुष्य : पीपल-Ficus religiosa
{9} आश्लेषा : नागकेसर-Mesua ferrea
{10} मघा : बरगद-Ficus bengalensis
{11} पुर्वा फाल्गुनी : पलाश/ढ़ाक-butea monosperma
{12} उत्तरी फाल्गुनी : प्लक्ष/पाकड़-Ficus lacor
{13} हस्त : रीठा/Sapindus mukorossi
{14} चित्रा : बिल्व/बेल -Aegle marmelos
{15} स्वाती : अर्जुन-Terminalia arjuna
{16} विशाखा : विकंकत/कटाई-Flacourtia indica
{17} अनुराधा : बकुल/मौलश्री-Mimusops elengi
{18} ज्येष्ठा : शाल्मली/सेमल-Bombax ceiba
{19} मूल : शाल-Shorea robusta
{20} पूर्वाषाढ : वेतस/Salix caprea
{21} उत्तराषाढा : कटहल/Artocarpus heterophyllus
{22} श्रवण : अर्क/मदार-Calotropis procera
{23} धनिष्ठा : शमी-Procopis ceneria
{24} शतभिषा : कदम्ब-Anthocephlous cadamba
{25} पूर्वा भाद्रपद : आम-Mangifera indica
{26} उत्तरा भाद्रपद : नीम-Azadiracta indica
{27} रेवती : महुआ-Madhuca longifoli
इसी प्रकार बारह राशि के लिए भी पेड़-पौधे निर्धारित है l
मेष – आंवला
वृष – जामुन,
मिथुन – शीशम,
कर्क – नागकेश्वर,
सिंह – पलास,
कन्या – रिट्ठा,
तुला – अजरुन,
वृश्चिक – भालसरी,
धनु – जलवेतस,
मकर – अकोन,
कुंभ – कदम्ब
मीन – नीम
सूर्य – अकोन ( एकवन)
चन्द्रमा – पलास,
मंगल – खैर,
बुद्ध – चिरचिरी,
गुरु – पीपल,
शुक्र – गुलड़,
शनि – शमी,
राहु – दुर्वा व
केतु – कुश
आराध्य वृक्ष के काटने से वृक्ष काटने वाले मनुष्य का मस्तिष्क विकृत हो सकता हैं। उसका गृहस्थ जीवन कलह पूर्ण होकर उसकी संताने असामाजिक कार्यो में लिप्त होकर मानसिक क्लेश का कारण बन सकती है। आर्थिक संकट से वह सदा पीडि़त रह सकता है, साथ ही उसकी मान-प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती हैं।
इसके विपरीत यदि आप संतान सुख से वंचित है, तो अपने आराध्य वृक्ष के कम से कम पांच वृक्ष लगाए एवं उनकी सुरक्षा भी स्वयं करें। इसी तरह ऋण मुक्ति हेतु आरध्य वृक्ष के सात पेड़, गहस्थ जीवन में तनाव मुक्ति हेतु तीन पेड़, जमीन-जायदा संबंधी झगडे, कोर्ट में लंबित मामलों के निपटारे हेतु पांच पेडों को लगाने का विधान हैं। किसी व्यक्ति के घर छोडक़र चले जाने व लंबे समय तक घर वापस न आने की स्थिति में उसके नक्षत्र से संबंधी एक वृक्ष लगाएँ व उसकी सेवा करें। इसी के साथ अपनी किसी भी अभिलाषा की पूर्ति हेतु आप अपने आराध्य वृक्ष का पेड़ लगाकर उसकी सेवा करें। आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगीं।
वास्तुशास्त्र में उचित स्थान पर वृक्षारोपण एवं घर में बगीचे की व्यवस्था को बहुत महत्वपूर्ण माना गया हैं। सभी तरह के वृक्ष प्रत्येक दिशा के लिए अनुकूल नहीं होते और न ही प्रत्येक दिशा में सभी तरह के वृक्षों से हमें लाभ मिलता हैं। घर में चार दीवारी के अन्दर दूध वाले, कांटे वाले वृक्षों को नही लगाना चाहिए, साथ ही घर में इतने घने वृक्ष भी नहीं होने चाहिए जिससे सूर्य का प्रकाश अवरूद्ध हो अन्यथा इस तरह के घर असमृद्धिकारी होते हैं।
घर के उत्तरी एवं पश्चिमी भाग में बगीचा चार दीवारी के अन्दर लगाना उपयुक्त माना गया है। उत्तर-पश्चिम में अशोक, कनक, चम्पा, नारियल आदि के वृक्ष शुभप्रद होते हैं। उत्तर में वृक्ष दूर-दूर पर लगाना चाहिए। तुलसी का पौधा पूर्व में , या ईशान में शुभ होता है एवं पर्यावरण प्रदूषण को दूर करता है। चार दीवारी के बाहर इतनी दूर पर कि वृक्ष की छाया घर पर न पड़े । दक्षिण में गलूर एवं पलाश, उत्तर में पाकड़, नीम, कनक चम्पा आदि शुभ माने गये हैं। पूर्व दिशा में छोटे पौधे कम ऊंचाई के लगाने चाहिए, जिससे सूर्य किरणों का निरन्तर प्रवाह बना रहे। बगीचे के मध्य में या घर के मध्य में कोई पेड़ न लगाएँ । केकटस आदि घर में लगाना वर्जित है। बेर का वृक्ष अपनी चार दीवारी के अन्दर नहीं होना चाहिए, इससे अनावश्यक वैर भाव-मुकदमें बाजी होने लगती हैं।
घर की दीवारों पर किसी भी प्रकार की बेल नहीं चढ़ाना चाहिए। घर के मध्य में पनी का टांका, झरना, स्वीमिंग पूल आदि नहीं बनाना चाहिए बांस को चार दीवारी के किनारे नहीं रोपना चाहिए। दक्षिण-पश्चिम में भरीी गमले रखे, भारी मूर्तियों को लगाए तथा इस क्षेत्र को अधिक से अधिक भारी बनावें।
वास्तु शास्त्र के अनुसार- कौन सा वृक्ष किस दिशा में लगाएँ, जिसके फलस्वरूप वास्तुदोष ठीक किया जा सकता है। जो निम्रानुसार समझना चाहिए।
घर में पश्चिम दिशा में पीपल, दक्षिण दिशा में गूलर तथा उत्तर दिशा में पाकड़ का वृक्ष शुभ फलप्रद माना जाता हैं। इसके विपरीत दिशा में रहने पर ये वृक्ष विपरहीत फल देने वाले होते हैं।
पद्य पुराण में भी कहा गया है कि जहाँ तुलसी-वृक्ष के उपवन लगे रहते है और जहाँ कमल-पुष्पों के भी उपवन सुशोभित होते रहते है तथा तहाँ वैष्णव लोग निवास करते है, वहां साक्षात्- भगवान् विष्णु निवास करते हैं। तुलसी का पौधे घर के ईशान क्षेत्र या पूर्व दिशा में लगाना शुभफलप्रद होता हैं।
अर्थात् शुभेच्छुक गृहस्वामी को उत्तम व प्रशंसित वृक्ष पुन्नाग, अशोक, अशिष्ट मौलसरी, कटहल शमी व शाल में से कोई भी वृक्ष लगा देने से दोष निवृत हो जाते हैं।
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वृक्षों का रोपण करना अपने आप में महान् कार्य है। जीवन में वृक्षारोपण करने से मनुष्य को अपने आप में संतुष्टि का अनुभव होता है। पीपल या कोई अन्य फलदार वृक्ष घर के दालान या किसी भी ऐसी सुरक्षित जगह में क्यो नहीं लगाना चाहिए। जबकि पीपल का वृक्ष तो 24 घंटे आक्सीजन देता है। जो वृक्ष प्राणदायक है। वह किसी भी मनुष्य के लिए अशुभ कैसे हो सकता है।जिस वृक्ष पर हजारों जीव-जंतुओं जीवन प्राप्त होता हो।उस वृक्ष को लगाने वाले का अशुभ भी कैसे हो सकता है। इस प्रश्न को समझाने की कृपा करें। धन्यवाद।