दीपावली पूजन की विस्तृत विधि
हमारे देश में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टियों से अप्रतिम महत्त्व है। सामाजिक दृष्टि से इस पर्व का महत्त्व इसलिए है कि दीपावली आने से पूर्व ही लोग अपने घर-द्वार की स्वछता पर ध्यान देते हैं। घर का कूड़ा-करकट साफ करते हैं। टूट-फूट सुधरवाकर घर की दीवारों पर सफेदी, दरवाजों पर रंग-रोगन करवाते हैं। इससे उस स्थान की न केवल आयु ही बढ़ जाती है, बल्कि आकर्षण भी बढ़ जाता है।
दीपावली के दिन धन-सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। शास्त्रों का कथन है कि जो व्यक्ति दीपावली को दिन-रात जागरण करके लक्ष्मी की पूजा करता है उसके घर लक्ष्मीजी का निवास होता है। आलस्य और निद्रा में पडक़र जो दीपावली यूं ही गंवाता है, उसके घर से लक्ष्मी रूठकर चली जाती है।
ब्रह्म पुराण में लिखा है कि कार्तिक की अमावस्या को अर्ध रात्रि के समय लक्ष्मी महारानी सद्ग्रस्थों के घर में जहां-तहां विचरण करती हैं। इसलिए अपने घर को सब प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित करके दीपावली तथा दीपमालिका मनाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं और वहां स्थाई रूप से निवास करती हैं। यह अमावस्या प्रदोष काल से आधी रात तक रहने वाली श्रेष्ट होती है। यदि आधी रात तक न भी रहे तो प्रदोष व्यापिनी दीपावली माननी चाहिए।
प्राय: प्रत्येक घर में लोग अपने रीति-रिवाज के अनुसार गणेश-लक्ष्मी पूजन तथा द्रव्यलक्ष्मी-पूजन करते हैं। कुछ स्थानों में दीवार पर अथवा काष्ठपट्टिका पर खडिय़ा मिटटी तथा विभिन्न रंगों द्वारा चित्र बनाकर या पाटे पर गणेश लक्ष्मी की मूर्ति रखकर कुछ चांदी आदि के सिक्के रखकर इनका पूजन करते हैं तथा थाली में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकों के मध्य तेल से प्रज्ज्वलित चौमुखा दीपक रखकर दीपमालिका का पूजन भी करते हैं और पूजा के अनन्तर उन दीपों को घर के मुख्य-मुख्य स्थानों पर रख देते हैं। चौमुखा दीपक रातभर जले ऐसी वयवस्था करनी चाहिए।