वेदांग ज्योतिष में मुहूर्त
– आचार्य अनुपम जौली
गणेशम् एकदन्तं च हेरम्बं विध्ननायकम्, लम्बोदर्ं शूर्पकर्णम् गजवक्त्रम् गुहाग्रजम्।
नामाष्टार्थ च पुत्रस्य श्रृणु मातर्हरप्रिये, स्रोत्राणां सारभूतं च सर्वविध्न हरम् परम्।।
वेदांग ज्योतिष में मुहूर्त देखने के लिए एक विशेष शाखा का निर्माण किया गया है। ज्योतिष की इस शाखा को मुहूर्त ज्योतिष कहा जाता है। मुहूर्त ज्योतिष के पांच अंग हैं- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण।
वेदांग ज्योतिष के अनुसार समय को कई इकाईयों के रुप में विभक्त किया गया है। इसी क्रम में 48 मिनट के समय को एक मुहूर्त कहा जाता है। एक सौर-दिवस में 30 मुहूर्त होते हैं अर्थात एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के बीच कुल 30 मुहूर्त होते हैं। इनमें भी 15 मुहूर्त मुख्य होते हैं जो सूर्यास्त के बाद वापस दोहराएं जाते हैं (अर्थात पहला और सोलहवां मुहूर्त एक ही होते हैं, दूसरा और सत्रहवां, तीसरा और अठारहवा आदि इसी क्रम से एक होते हैं) ये मुहूर्त इस प्रकार हैं-
- रौद्र – दिन का पहला तथा सोलहवें मुहूर्त को रौद्र मुहूर्त कहा जाता है। इस मुहूर्त का आरंभ ठीक सूर्योदय से होता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इस मुहूर्त का उपयोग शुभ एवं रचनात्मक कार्यों के लिए नहीं किया जाता है। अपितु इस समय में यदि क्रूर और विध्वंसात्मक कार्यों को आरंभ करना अत्यन्त शुभ माना जाता है।
- श्वेत – दिन का दूसरा तथा सत्रहवां मुहूर्त को श्वेत मुहूर्त कहलाता है। यह सूर्योदय के 48 मिनट पश्चात आरंभ होता है। इस शुभ कार्य प्रारम्भ करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस मुहूर्त में पवित्र स्नान करना, नवीन वस्त्र धारण करना, अथवा अन्य कोई भी रचनात्मक कार्य करना शुभ माना जाता है।
- मैत्र – दिन के तीसरे तथा अठारहवां मुहूर्त मैत्र मुहूर्त के नाम से जाना जाता है। यह सूर्योदय से एक घंटा 36 मिनट बाद आरंभ होता है। इस मुहूर्त को मित्रता आरंभ करने के लिए शुभ माना जाता है। यदि इस मुहूर्त के दौरान मैत्री-संधि के प्रयास किए जाएं तो परिणाम अत्यन्त अनुकूल रहता है।
- सार-भट्ट – दिन के चतुर्थ तथा उन्नीसवें मुहूर्त को सारभट्ट मुहूर्त के नाम से जाना जाता है। यह भी उग्र कार्य यथा शत्रुदमन, अभिचार तथा तंत्र-मंत्र जैसे कार्यों के लिए उपयुक्त माना गया है।
- सावित्र मुहूर्त – दिन के पांचवां तथा बीसवां मुहूत को सावित्र मुहूर्त कहा जाता है। इसे यज्ञ, पूजा, हवन, विवाह, चूड़ाकर्म, उपनयन तथा अन्य शुभ कार्यों हेतु अत्यन्त उपयुक्त बताया गया है।
- वैराज या वज्र मुहूर्त दिन का छठां तथा इक्कीसवां मुहूर्त है। इसे राजाओं तथा क्षत्रियों के लिए विशेष शुभदायी कहा गया है। इसमें राजा तथा सेना द्वारा शस्त्र, कवच आदि धारण करना, सेना के प्रयाण, नए शस्त्रायुधों के निर्माण कार्य हेतु शुभ माना जाता है।
- विश्वावसु मुहूर्त – दिन का सातवां तथा बाइसवां मुहूर्त विश्वावसु मुहूर्त के नाम से प्रसिद्ध है। इसे धन कमाने तथा संचय करने के लिए शुभ माना जाता है। आय प्राप्ति के लिए कोई भी नया कार्य आरंभ करना हो तो यह मुहूर्त सबसे अच्छा माना जाता है।
- अभिजीत मुहूर्त – दिन के आठवें तथा तेइसवें मुहूर्त को ही अभिजीत मुहूर्त के नाम से पहचानते हैं। यूं तो यह मुहूर्त समस्त कार्यों हेतु शुभ है परन्तु मैत्री संबंध, मिलन, संधि, एग्रीमेंट करने आदि के लिए इस मुहूर्त की विशेष उपयोगिता मानी गई है। शास्त्रानुसार भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी के मध्यान्ह अभिजीत मुहूर्त में हुआ था तथा भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद की कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को अभिजीत मुहूर्त में हुआ था। अतः इस मुहूर्त को समस्त शुभ कार्यों के लिए अनुकूल माना जाता है.
- रोहिण मुहूर्त – दिन का नवां तथा चौइसवां मुहूर्त रोहिण के नाम से जाना जाता है। यह नए बाग-बगीचों बनाने तथा पेड़-पौधों को लगाने के लिए शुभ माना जाता है। यह कृषकों के लिए विशेष रूप से उपयोगी माना जाता है।
- बल मुहूर्त दिन के दसवें तथा पच्चीसवें मुहूर्त को कहते हैं। यह मुहूर्त साहसी कार्यों यथा शत्रु पर आक्रमण के लिए शुभ फलदायक होता है।
- विजय मुहूर्त दिन के ग्यारहवें तथा छबीसवें मुहूर्त को कहते हैं। जैसाकि नाम से ही प्रतीत होता है। विजय मुहूर्त शत्रु पर आक्रमण के लिए अचूक माना गया है। परन्तु इसमें पूजा-पाठ तथा हवन जैसे मांगलिक कार्य भी किए जाते हैं।
- नैऋत मुहूर्त दिन का बारहवां तथा सताईसवां मुहूर्त होता है। इसे अत्यन्त क्रूर माना जाता है। इस समय में शत्रु पर आक्रमण किया जाए तो उस पर अवश्य विजय मिलती है। यहां तक कि शत्रु की समस्त सुख-संपत्ति को भी अपने काबू में किया जा सकता है।
- वरुण या वारुण मुहूर्त दिन का तेरहवां तथा अठाईसवां मुहूर्त होता है। अपने नामानुसार वरुण मुहूर्त जल संबंधी कार्यों के लिए विशेष रुप से अनुकूल माना जाता है। इसमें बीजों को बोने, खेत जोतने, जलाशयों के निर्माण करने, सिंचाई परियोजना बनाने आदि काम किए जाते हैं।
- सौम्य मुहूर्त दिन का चौदहवां तथा उनतीसवां मुहूर्त है। इस संसार में जितने भी सौम्य प्रकृति अथवा नवीन रचना वाले शुभ कार्य है, उन्हें इस मुहूर्त में आरंभ करने पर अवश्य सफलता मिलती है।
- भग मुहूर्त दिन का आखिरी (अर्थात पंद्रहवां तथा तीसवां) मुहूर्त होता है। अर्थात दिन और रात्रि का आरंभ रौद्र मुहूर्त से आरंभ होकर भग मुहूर्त पर समाप्त होते हैं। इस समय को कन्याओं के लिए भाग्यशाली माना जाता है। इस समय में विवाह कार्य, पाणिग्रहण संस्कार, सिंदूर दान आदि किए जाते हैं। वर्तमान में भी हिंदुओं में इसी मुहूर्त के समय में कन्यादान तथा फेरे की रस्म की जाती है।
माना जाता है कि दूसरी सदी तक ज्योतिष में इन्हीं मुहूर्तों का प्रयोग किया जाता है परन्तु कालान्तर में पंडितों ने सर्वकार्यसिद्धि होरा-चक्र अथवा चौघड़िया मुहूर्त का प्रचलन आरंभ किया जो कि एक प्रकार से इन्हीं का रूप है। चौघड़ियां में भी इन्हीं मुहूर्तों का इस्तेमाल करते हुए शुभ-अशुभ समय की गणना की जाती है।
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In present scenario most important Muhurth is Abhijit Muhurth. But now we got knowledge of other muhurths also.
Thanks Acharya Anupam Jolly Ji to elaborate total numbers of muhurths in a day and night.