ज्योतिष शिक्षण माला भाग – 002

फलित ज्योतिष शिक्षा की शुरूआत के मूलभूत सिद्धांत

हमारे सौरमंडल में नौ ग्रह हैं : सूर्य, चंद्र, मंगल, बंध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु। इनमें राहु तथा केतु छाया ग्रह हैं। ग्रहों के पथ को राशि चक्र कहते हैं।

यहाँ इन ग्रहों के विविध कारकत्वों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत हैं:

१. सूर्य – पिता, आत्मा, औषधि, राजनीति, राजकृपा, सत्ता में स्थान, ख्याति, प्रतिष्ठा, शौर्य, स्वास्थ्य, दायीं आँख पूर्व दिशा आदि का कारक है।

२. चंद्र-  माता, अनुभूति, स्त्रियों तथा उनसे मिलने वाले लाभ, मुखाकृति की आभा, सौंदर्य, बायीं आंख, तरल पदार्थ, मोती, मन, फेफड़ों तथा उत्तर और दक्षिण दिशाओं का कारक है।

३. मंगल- छोटे भाई-बहन, साहस, पराक्रम, शारीरिक शक्ति, कलह, भूमि और संपत्ति, शस्त्रघात, पुलिस विभाग, इंजीनियरिंग, सैनिक, दुर्घटना, सशस्त्र बल, शत्रु, मुकदमा, खून, मज्जा, सर्जरी, क्रोध और दक्षिण दिशा का कारक है।

४. बुध-  बुद्धि, अत्यधिक पढऩे की आदत, वाणी, ज्योतिष, लेखन, प्रकाशन, गणित, बैंकिंग, अंकेक्षण, मामा, स्नायु तंत्र, त्वचा, हांस्य, तर्क शक्ति, गणित, त्वचा तथा उत्तर दिशा आदि का कारक है।

५. बृहस्पति- संपत्ति, उच्च जीवन स्तर, संतान सुख, बड़ा भाई, ज्ञान, सतो गुण, परामर्श, धर्म, संस्कार, पेट, न्याय, उपदेश, भागय, आस्तिकता तथा उससे संबंधित विषय, प्रतिष्ठा, महत्त्व, वेद का ज्ञान, मोटापा, व्याख्यान, सिद्धांत, विधि विशेषज्ञ, स्त्री की जन्मकुंडली में पति, राजनीति कूटनीति, यकृत, पूर्व-उत्तर दिशा का कारक है।

६. शुक्र-  पत्नी, पति, काम, वाहन, कला, गायन, आभूषण, मूल्यवान रत्नों, विलासिता या विलासिता की सामग्रियों, सौंदर्य, मनोरंजन स्थलों, रसायनों आदि का कारक है। शुक्र से संबंधित व्यवसाय के क्षेत्र हैं फिल्म उद्योग, नृत्य, नाटक, वस्त्र या वस्त्र उद्योग, इत्र और सुगंधित द्रव्य, स्त्रियों से संबंधित वस्तु, संगीत, होटल आदि। यह गुप्तांगों, गुर्दा, दक्षिण-पूर्व दिशा आदि का भी द्योतक है।

७. शनि-  दीर्घायु, मृत्यु, कठोर परिश्रम, गूढ़ ज्ञान, भय, निर्धनता, श्रम, अपमान, सेवा, नौकर, पुरानी बीमारी, कू्रर कार्य आदि का कारक है। राजनीति में शनि नेता का द्योतक है। यह लोहा और इस्पात, काली वस्तु, पश्चिम दिशा आदि का द्योतक भी है।

८. राहु-  दादा, कटु बोली, जुआ, गूढ शास्त्र, विदेशीयों, भ्रम, विधवा, तीर्थस्थान, अत्यधिक पीड़ा झूठा, फरेब, परिवर्तन, विदेश यात्रा तथा दक्षिण-पश्चिम आदि का काकर है।

९. केतु-  नाना, गणितीय योगयता, अचानक दुर्घटना, विदेशी भाषा, प्रतिभा, चर्म, शत्रु प्रदत्त पीड़ा, सफेद दाग, मोक्ष, ज्ञान कम्पयूटर शिक्षा, वायुयान आदि का कारक है।



जन्मकुंडली १२ भावों में विभाजित होती है और प्रत्येक भाव का अपना कारकत्व होता है। किसी जन्मकुंडली का विश्लेषण करने के लिए उसके प्रत्येक भाव तथा नौ ग्रहों के कारकत्वों का ज्ञान आवश्यक है। यहाँ कुंडली के प्रत्येक भाव के कारकत्व का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।

लग्न या प्रथम भाव:

इसे लग्न भी कहते हैं। यह काल पुरुष का सिर है तथा शारीरिक सुख, स्वभाव, दीर्घायु, सुख-समृद्धि, केश, यश-मान, प्रतिष्ठा का भाव है। इसका कारक सूर्य है तथा यह पूर्व दिशा है।

द्वितीय भाव:

इसे कुटुंब, धन भाव  भी कहते हैं। यह काल पुरुष का मुख है तथा वाणी, स्वाद, दायां नेत्र, धन की बचत मरक स्थान, मुखाकृति, शासन, भाषण शकित का द्योतक है। इसका कारक बृहस्पति है तथा वाणी के लिए बुध कारक है।

तृतीय भाव :

इसे पराक्रम तथा सहोदर भाव कहते हैं। यह काल पुरुष का दायां हाथ है तथा पड़ोसी, परिवर्तन, साहस, छोटे भाई-बहन, नौकर, कान, आभूषण, आयु, श्वसुर, छोटी यात्राऐं, खेल, लेखन आदि का द्योतक है। शनि इस भाव का कारक है। छोटे भाई-बहन तथा पराक्रम के लिए मंगल तथा आयु नौकरों के लिए शनि तृतीय  भाव का कारक ग्रह है।

चतुर्थ भाव:

इसे सुख भाव कहते हैं। यह काल पुरुष का मन, छाति, फेफड़ों का भाव है तथा वाहन सुख, जमीन-जायदाद, खेत खलिहान, मां, मन, शिक्षा, गड़ा हुआ धन, जीवन स्तर आदि का द्योतक है। जमीन-जायदाद के लिए मंगल तथा वाहन सुख के लिए शुग्र एवं मां के लिए चंद्रमा कारक होता है। यह उत्तर दिशा है।

पंचम भाव:

इसे पुत्र भाव भी कहते हैं। यह काल पुरुष का पेट है तथा संतान, बुद्धि, रोमांस, व्यवसाय में बाधा, पूर्व जन्म के पुण्य, मंत्र, ज्ञान, पेट, गर्भ, गायन, लेखन, विद्वता, आस्था आदि का द्योतक है। संतान के लिए बृहस्पति तथा बुद्धि और शिक्षा के लिए बुध कारक होता है।

षष्ट भाव:

इसे शत्रु भाव भी कहते हैं। यह काल पुरुष की बस्ती (नाभि से लेकर लिंग मूल तक का स्थान) है। तथा शत्रु, दुर्घटना, रोग, कर्जा, प्रतियोगिता, मातुल पक्ष, ऑपरेशन, मामा, नौकरी, कलह, मुकदमा आदि का द्योतक है। रोगों के लिए शनि तथा मातुल पक्ष के लिए बुध एवं दुर्घटना आदि के लिए मंगल कारक होता है।



सप्तम भाव:

इस जाया भाव भी कहते हैं। यह काल पुरुष के गुप्तांग (जनेन्द्रियाँ) हैं तथा साझेदारी, आकर्षण, विवाह, अलगाव, जीवन साथ की मृत्यु, यश, मान, प्रतिष्ठा, मारक भाव, व्यभिचार, गुप्त रोग आदि का द्योतक है। स्त्रियों के लिए बृहस्पति तथा पुरुषों के लिए शुक्र कारक होता है। यह पश्चिम दिशा है।

अष्टम भाव:

इसे रन्ध्र भाव भी कहते हैं। यह काल पुरुष का गुप्तांग (कुल्हे) हैं तथा आयु, मृत्यु का प्रकार, संघर्ष, कठिनाईयां, ससुराल, जीवन साथी का धन, गुप्त विभाग, जीवन बीमा, रहस्य, छुपी हुई शक्तियाँ, गड़ा हुआ धन, दु:ख, दरिद्रता, पैतृक संपत्ति, मलद्वार, दीर्घ रोग, आक्रमण, रिसना, गुप्त ज्ञान आदि का द्योतक है। इस भाव का कारक ग्रह शनि है।

नवम भाव:

इसे भागय या धर्म भाव भी कहते हैं। यह काल पुरुष की जंघा है तथा भागय, पिता, धर्म, भक्ति, आस्था, निर्धनता, गुरु, उपदेश, न्याय, धार्मिक क्रिया कलाप, धार्मिक यात्राएं, उच्चतर शिक्षा, भागयोदय आदि का द्योतक है। पिता के लिए सूर्य तथा भागय के लिए बृहस्पति कारक होते हैं।

दशम भाव:

इस कर्म तथा यश भाव भी कहते हैं। यह काल पुरुष के घुटने हैं तथा व्यवसाय, यश मान प्रतिष्ठा, स्वतंत्र व्यवसाय, प्रसिद्धि राज्य कृपा, बड़े लोगों से संबंध, नौकरी या व्यवसाय में उतार-चढ़ाव, जीविका, कार्य करने की क्षमता आदि का द्योतक है। इसके कारक ग्रह सूर्य, बुध, शनि हैं। यह दक्षिण दिशा है।

एकादश भाव:

इसे लाभ भाव भी कहते हैं। यह काल पुरुष की पिण्डलियाँ हैं तथा लाभ, आय के स्त्रोत, बड़े भाई बहन, चाचा, बुआ, पुत्रवधु, स्वास्थ्य एवं सभी कामनाओं की पूर्ति का भाव है। इस भाव का कारक ग्रह बृहस्पति होता है।

द्वादश भाव:

इसे हानि लाभ व्यय भाव भी कहते हैं। यह काल पुरुष के पैर (जानु) हैं तथा विदेश यात्रा, अपव्यय, हॉस्पिटल का खर्च, रति सुख, वैश्यावृत्ति, दान देने की क्षमता, जेल बांई आँख, खर्च करने की प्रवृत्ति, मोक्ष, खुले विचार आदि का द्योतक है। रति सुख के लिए शुक्र तथा हॉस्पिटल खर्च आदि के लिए शनि तथा विदेश यात्रा के लिए राहु और मोक्ष के लिए केतु कारक ग्रह होते है।

इस प्रकार हमारे जीवन के सभी विषयों को किसी भाव विशेष से देखा जाता है। यदि हमें भाव का ज्ञान हो तो हम उस भाव से सम्बंधित विषय का ज्ञान ज्योतिष के द्वारा कर सकते है।



जन्मपत्रिका देखने के लिए कारक ग्रह और उससे भाव की गणना का बहुत महत्त्व है। जैसे : माता के लिए चंद्र और चंद्र से चतुर्थ भाव, पिता के लिए सूर्य और सूर्य से नवम, संतान के लिए गुरु और गुरु से पंचम भाव, पत्नी के लिए शुक्र और शुक्र से सप्तम भाव तथा छोटे भाई-बहनों के लिए मंगल और मंगल से तृतीय भाव। इस प्रकार भाव तथा ग्रह के सिद्धांतानुसार फल का विवेक करना चाहिए।

वाहनों के लिए शुक्र तथा शुक्र से चतुर्थ भाव, भू-संपति के लिए मंगल और मंगल से चतुर्थ भाव और शिक्षा के लिए बुध तथा बुध से पंचम भाव इस प्रकार प्रत्येक भाव एवं उसके कारक ग्रह से भावात भावम सिद्धांतानुसार विश्लेषण करना चाहिए। अस्तु!

इस प्रकार हमने ग्रहों तथा जन्मकुंडली के भावों का अध्ययन किया। किसी जन्मकुंडली के सटीक विश्लेषण के लिए हमें विभिन्न ग्रहों के बलों के मूल्यांकन की विधि का ज्ञान होना चाहिए। सबसे पहले हमें जन्मकुंडली में ग्रह का बल देखना चाहिए। यदि ग्रह बली है, तो वह अपने कारकत्व तथा जिस भाव का स्वामी है और जिन भावों को दृष्ट करता है से संबंधित शुभ फल देगा। यदि ग्रह दुर्बल है तो अपने कारकत्व और जिस भाव का वह स्वामी है उस भाव से संबंधित शुभ फल नहीं दे पाएगा।

ग्रहों के बल का जानने के लिए षडबल पद्धति से गणना द्वारा ग्रह बल निकला जाता है। ग्रन्थ जातक पारिजात में षडबल निकाले बिना ही यदि शुभ पंचक के नियमों को ध्यान में रखा जाए तो भी हम ग्रहों के बल व उनका फलित में उपयोग बखूबी कर सकते है। ग्रहों का शुभ पंचक का सूत्र निम्न प्रकार से समझ सकते है।

१. वर्गोत्तमी होना

२. उच्च राशिस्थ होना

३. मूल त्रिकोणस्थ होना

४. स्व राशिस्थ होना

५. मित्र राशिस्थ होना

उपरोक्त परिस्थतियों में ग्रहों को बलवान माना गया है। जिसके कारण वे अपने शुभ फल देने में सक्षम होते हैं। हम यहाँ पर कुछ ग्रहों के निर्बल होने के सूत्रों का प्रतिपादन कर रहे हैं।

१. अस्तंगत होना।

२. नीचस्थ होना

३. त्रिक भावों में स्थित होना

४. पापकर्तरी योग में होना

५. २२वां द्रेष्कोण तथा ६४वें नवमांश का स्वामी

६. अति शत्रु राशि में स्थित होना।

७. अशुभ षष्टयांश में होना।

इन परिस्थितियों में ग्रह निर्बल होते हैं। लेकिन इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि यदि उपरोक्त स्थिति में स्थित ग्रह यदि केन्द्रोश या त्रिकोणेश से संबंध बनाये तो भी शुभ फल सन्धाता हो जाता है।

।। ॐ तत सत ।।



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